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Tuesday, 21 February 2017

राजस्थानी भाषा साहित्य : संक्षिप्त इतिहास
पिछली पोस्ट में हमने भाषा और राजस्थानी भाषा के इतिहास, उसका वितरण एवं यहाँ बोली जाने वाली समस्त बोलियों के बारे में पढ़ा और राजस्थानी भाषा द्वारा जो चुनौतियाँ झेली जा रही है उसके बारे में भी जाना | आज हम राजस्थान के समृद्ध साहित्य के बारे में बात करेंगे.

राजस्थानी साहित्य का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है | इसकी शुरुआत 11 वी शताब्दी से हुए जब मरू-गुर्जरी भाषा का विकास हुआ | राजस्थानी साहित्य को समय के आधार पर 3 भागो में विभाजित किया गया है |
  1. प्रारंभिक दौर (1100-1450)
  2. मध्य दौर (1450-1850)
  3. आधुनिक दौर (1850 1950)
राजस्थानी साहित्य का उसके विषय और शैली के अनुसार भी निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया गया है –
  • राजस्थानी जैन साहित्य
  • राजस्थानी चारण साहित्य
  • राजस्थानी संत साहित्य
  • राजस्थानी लोक साहित्य
हम सबसे पहले समय के आधार पर किए गए वर्गीकरण पर बात करते हैं |
प्रारंभिक दौर
राजस्थानी भाषा का सन 1169 से पूर्व का कोई भी लिखित साहित्य उपलब्ध नहीं है क्योंकि उस समय यह भाषा केवल बोली जाती थी. इसलिए राजस्थानी साहित्य की शुरुआत 11 वी  शताब्दी में मानी जाती है. राजस्थानी भाषा के साहित्य का शुरुआती काल सन 1100 से लेकर चौदहवीं शताब्दी के मध्य तक माना जाता है. इस काल में मुख्य तया जैन धर्म के विद्वानों ने राजस्थानी भाषा के साहित्य की तरफ काफी कार्य किया, जैन विद्वानों द्वारा रचित साहित्य निम्न प्रकार का है  
  • विज्रसेन सूरी द्वारा रचित भारतवर्ष  वर बाहु बली घोर
  • शालिभद्र सूरी द्वारा रचित भार्तेस्वर बाहुबली रास
  • असिग द्वारा रचित जियादार्य रास
  • जिन्प्रभा सूरी द्वारा पद्मावती चौपाई
  • हेमराज द्वारा रचित स्तुलिभाद्र फाग
  • विझाना द्वारा रचित ज्ञान मंजरी
     इस काल में कुछ जैन विद्वानों के अतिरिक्त दूसरे लोगों ने भी कुछ साहित्य की रचना की और जो की निम्न है.
  • 12 वी सदी  में चंदबरदाई द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो
  • गदन शिवदास द्वारा रचित खिंची री वचनिका
  • नरपति नाथ द्वारा रचित विसाल रास
  • श्रीधन द्वारा रचित रान्माल चंदा
मध्यकाल दौर
राजस्थानी साहित्य के मध्यकाल की शुरुआत सन 1450 से मानी जाती है, इस काल को राजस्थानी साहित्य का स्वर्णिम काल माना जाता है. इस काल में बहुत सा साहित्य लिखा गया. उनमे से कुछ कृतियाँ निम्न है   
  • साल 1455 में पद्मनाभ ने कन्हाद्दे प्रबंध लिखी. यह उस समय की एक ज्ञानकोष मानी जाती है  
  • ढोला मारू जैसी मशहूर कृति कल्लोल द्वारा सन 1473 में लिखी गयी  
  • भंडारी व्यास द्वारा 1481 में हम्मिरायण लिखी गई
  • बुद्धि रासो को सन 1568 में जल्लाह के द्वारा लिखा गया
  • खुम्मान रासो दलपत द्वारा 17 वी शताब्दी में लिखा गया
  • हालन झालण रा कुण्डलिया बिरथ इस्र्दास द्वारा लिखी गयी थी
आधुनिक काल में राजस्थानी साहित्य
राजस्थानी साहित्य का आधुनिक काल सन 1850 से शुरू हुआ. इस काल में बहुत से साहित्य प्रकाशित हुए और फिर भी ऐसे भी कई साहित्य है जो प्रकाशित नहीं हो सके जिनसे राजस्थानी साहित्य का सर्वे करने में बहुत समस्या हुई |
इस काल में लिखे गए कुछ मुख्य साहित्य निम्न है –
  • उन्नीसवी शताब्दी में बूंदी के सूर्यमल मिश्र ने वंश भास्कर और वीर सतसई जैसे साहित्य लिखे. सूर्यमल मिश्र को राजस्थान का भूषण भी कहा जाता है.
  • इसी काल में अलवर के रामनाथ काव्या ने द्रौपदी विनया और पाबूजी रा सोराथा लिखी
  • दादूपंथी विद्वान स्वरुप दास ने पांडव यशेदु चन्द्रिका लिखी
  • उन्नीसवी शताब्दी में महाराजा चतुर सिंह जी ने पतंजलि योगसूत्र और गीता को मेवाड़ी भाषा में अनुवादित किया
  • मेघराज मुकुल ने सेनानी नमक कविता को स्वरबद्ध किया

शैली व विषय के आधार पर राजस्थानी साहित्य का  वर्गीकरण
राजस्थानी साहित्य का उपरोक्त वर्गीकरण समय के आधार पर किया गया है . हमने देखा की अलग अलग समयावधि में बहुत से साहित्यिक कार्य हुए. राजस्थानी साहित्य में शुरू के युग से आधुनिक काल तक बहुत विकास हुआ. विषय और शैली के आधार पर भी एक वर्गीकरण किया गया है. वह वर्गीकरण निम्न प्रकार से है.
राजस्थानी जैन साहित्य
जैन विद्वानों द्वारा लिखित साहित्य को जैन साहित्य बोला जाता है. प्रारम्भ में जैन समुदाय का राजस्थानी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान रहा. यह साहित्य विभिन्न जैन मंदिरों में सहेज कर रखा गया है. उस समय के प्रमुख साहित्यकारों में हेमचन्द्र सूरी, हृशिवर्धन सूरी और हेमरतन सूरी है |     

राजस्थानी चारण साहित्य
चारण समुदाय का राजस्थानी साहित्य के विकास में बहुत योगदान रहा है. चारण समुदाय के लोगों ने राजपूत राजाओं की वीरता और उनके रहन सहन का उल्लेख अपनी रचनाओं में किया है. चारण समाज के कुछ लेखक निम्न प्रकार से है
  • बादर धाडी ने वीर भायां नामक रचना लिखी
  • चंदबरदाई द्वारा पृथ्वीराज रासो नामक रचना लिखी गयी
  • नैंसी ने नैंसी री ख्यात नामक रचना लिखी
  • बांकी दास ने बन्किदास री ख्यात नामक रचना लिखी
  • ढोला मारू रा दोहा भी चारण समुदाय से प्राप्त हुए
राजस्थानी संत समाज साहित्य
राजस्थान की भूमि ने बहुत से संतो को जन्म दिया है, जैसे मीरा बाई, राम स्नेही सम्प्रदाय के राम चरण जी इत्यादि. इन संतो ने भी साहित्य को अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है. संतो द्वारा साहित्य में दिए योगदान के कुछ उदाहरण निम्न प्रकार से है
  • मीरा की पदावली
  • दादू की वाणी
  • नरसिंग जी की वाणी
  • राम चरण जी की वाणी  
राजस्थानी लोक साहित्य
राजस्थान की लोक कलाएं पूरे विश्व में लोकप्रिय है, विश्व में राजस्थान के लोक संगीत का अपना एक विशिष्ट स्थान है. उसी प्रकार राजस्थान की लोक साहित्य का भी एक अपना स्थान है. लोक साहित्य में प्रचलित कहावतें, कहानियाँ इत्यादि को सम्मिलित किया जाता है |

इस प्रकार हम देखते है की राजस्थान का साहित्य एक समृद्ध साहित्य है, राजस्थान के साहित्य ने जीवन के हर पक्ष को छूआ है. चाहे वह ख़ुशी का मौका हो अथवा गम का राजस्थान का साहित्य कविताओं गीतों, गद्य, व् पद्य के माध्यम से जीवन को परिचय करवाता है. समस्त राजस्थानियों का यह कर्तव्य है की अपने साहित्य की रक्षा करें और उस पर गर्व करें |      

Friday, 17 February 2017

भारत ही नहीं बल्कि " पाकिस्तान " के भी कुछ क्षेत्र में बोली जाती है राजस्थानी

"सोने री धरती अठे, और चाँदी रो आसमान रंग रंगीलो रस भरयो, म्हारो प्यारो राजस्थान...केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारे देश"

 राजस्थानी भाषा का इतिहास और आगे की चुनौतियाँ (भाग 1)

राजस्थानी लोक गीत केसरिया बालम की ये कुछ पंक्तियाँ राजस्थान के बारे में एक संक्षिप्त परिचय तो दे ही देती  है, राजस्थान जिसकी धरती सोने सी है और आसमान चांदी सा और यहाँ चारों तरफ अलग अलग रंग भी दिखाई दे ही जाते है | ये चंद पंक्तियाँ राजस्थानी भाषा के बारे में भी ये बता ही देती है की यहाँ की भाषा कितनी समृद्ध है | राजस्थान के समृद्धशाली इतिहास में राजस्थानी भाषा का बहुत महत्व रहा है | 
राजस्थान का इतिहास राजाओं और उनके राज्यों के इतिहास के बिना अधूरा है | राजस्थान पर बहुत से शाही घरानों ने राज किया जिनको महाराजा, सवाई, महाराणा इत्यादि नामो से जाना जाता है | राजस्थान पर मुख्यतया शासन राजपूत शासकों ने किया, अतः राजस्थान को स्वतंत्रता से पूर्व राजपूताना के नाम से भी जाना जाता था | इन राजाओं के बारे में बहुत सा इतिहास कविताओं के रूप में स्थानीय बोलियों जैसे मारवाड़ी, शेखावाटी, मेवाती, बागड़ी, हाडौती, मेवाड़ी, और धुधाड़ी इत्यादि में उपलब्ध है | इन कविताओं में कवियों ने राजाओं के वीरता को अपनी कलम से कागज़ पर उतारा हैं | ऐसी समस्त बोलियों कि राजस्थानी भाषा के विकास में समान हिस्सेदारी है | राजस्थानी भाषा में लिखा यह साहित्य ना केवल राजस्थानी भाषा की विरासत है अपितु यह सम्पूर्ण राजस्थान के लिए भी एक गर्व का विषय है |

         

  • राजस्थानी भाषा का इतिहास 

राजस्थानी भाषा एक भारतीय आर्य भाषा है जिसका जन्म संस्कृत से हुआ है | भारतीय भाषा कुछ भाषा विशेषज्ञों का मानना है की राजस्थानी भाषा का विकास प्राकृत भाषा की शाखा डिंगल से हुआ है | डिंगल से मारवाड़ी और गुजराती भाषा का विकास हुआ है, वहीं संस्कृत की एक शाखा पिंगल से खड़ी हिंदी और ब्रिज भाषा विकसित हुए, भाषा विशेषज्ञों के अनुसार राजस्थान की प्रमुख भाषा मारवाड़ी है (मारवाड़ी का पहले नाम मरुभाषा कहा गया था ) | डॉ सुनीति कुमार चटर्जी ने राजस्थानी भाषा के लिए मारवाड़ी या डिंगल शब्दों का प्रयोग किया है |



  • राजस्थानी भाषा का वितरण 

भारत में भाषा के वितरण को जानने के लिए जॉर्ज ग्रियर्सन ने एक सर्वे करवाया था, इस सर्वेक्षण के अनुसार राजस्थानी भाषा ना केवल राजस्थान में बोली जाती है अपितु यह गुजरात, पंजाब तथा हरियाणा के कुछ भागो में भी बोली जाती है | भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के कुछ क्षेत्र जैसे बहावलपुर, थारपारकर तथा मुल्तान प्रान्त में भी राजस्थानी भाषा को बोला जाता है उसके पश्चात बहावलपुर और मुल्तान में यह रियासती और सरीकी भाषा के साथ मिश्रित हो जाती है | उसके बाद यह पाकिस्तान के सुक्कुर और उमरकोट में  सिन्धी भाषा के साथ संपर्क में आती है | यहीं नहीं राजस्थानी भाषा लाहौर में भी कुछ भागो में बोली जाती है |

यह राजस्थानी भाषा का इतिहास और आगे की चुनौतियाँ नामक ब्लॉग पोस्ट का प्रथम भाग है | 

इस ब्लॉग को अंग्रेजी में यहाँ पढ़े - 

Rajasthani Language history and challenges (part 1) 

Rajasthani Language history and challenges (part 1)

"सोने री धरती अठे, और चाँदी रो आसमान रंग रंगीलो रस भरयो, म्हारो प्यारो राजस्थान...केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारे देश"



Rajasthan, The Royal land, the lines above tell everything about this historical province of India. These lines state that Rajasthan's land is as pure as gold, the sky is as vibrant as silver and Rajasthan is a colourful cultural region. These lines are from famous Rajasthani folk song "Kesaria Balam". These lines point at the fact that how rich is the Rajasthani language. Rajasthan’s history is very prosperous, and the role of Rajasthani language is very influential in it. 



The ancient Rajasthan was a group of royal kingdoms ruled by dynasties named like Maharaja, Sawai, Maharana, etc. A lot of Maharajas born here and ruled over it. The dominant rulers were from the Rajput community. Therefore the state was known as Rajputana in the pre-independence era. A lot of literature about those Kings is available in the form of poetry in local tongues like marwadi, Shekhawati, mewati, bagri, harauti, mewari, dhundhari, ahirwati etc. Where poets have expounded their stories, about the bravery of kings like heroes. All of such local tongues have equal contribution in the overall framework of Rajasthani language. This literature in Rajasthani language is the heritage as well as proud of whole Rajasthan.

  • History of Rajasthani Language

Rajasthani language is an Indo-Aryan language. Rajasthani language history starts long back from Sanskrit. Some linguists believe that Rajasthani language is developed from “Prakrit” language. One branch from “Prakrit” language derived which is called “Dingle.” Another Branch was formed from Sanskrit which is called “Pingle.”. From “Dingle” Gujarati and Marwadi language were born.  From “Pingle.” branch Hindi and Brij language were developed. According to linguists primary language of Rajasthan is Marwadi (which was called earlier “Marubhasha” ). Dr Suniti Kumar Chatterjee has used words “Marwadi” or “Dingle” for Rajasthani Language. 

  • Distribution of Rajasthani Language

Linguistic Survey of India was done by George A. Grierson. This survey was done to know how languages are distributed in India. According to Grierson Rajasthani is not only spoken in Rajasthan, but it is found in some parts of Gujarat, Haryana and Punjab. Even some places in Pakistan such as Bahawalpur, Tharparkar and Multan provinces also speaks Rajasthani language.  Then Rajasthani language merges with Riasti and Saraiki in Bahawalpur and Multan parts, respectively. It comes in contact with Sindhi from Dera Rahim Yar Khan through Sukkur and Ummerkot. Rajasthani Language is also common in some areas of Lahore.

This is the first part of this blog post Rajasthani Language history and challenges