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Thursday, 9 March 2017

राजस्थानी फिल्म तावड़ो: बॉलीवुड कनेक्शन


 Taawdo the film

जब से तावड़ो फिल्म का निर्माण शुरु हुआ तब से ही राजस्थानी फिल्म के प्रशंसको में एक गजब सा उत्साह देखने को मिल रहा है, इसकी एक तो वजह यह है की यह एक बहुत बड़े बजट की फिल्म है | इसके अतिरिक्त एक कारण यह है की इसमें बहुत से शीर्ष बॉलीवुड के कलाकार भी इसमें शिरकत कर रहे है | वहीँ राजस्थानी भाषा के जानकार भी इस बात को लेकर उत्साह में है की बॉलीवुड जैसी बड़ी इंडस्ट्री का साथ राजस्थानी सिनेमा को यदि मिलता है तो राजस्थानी भाषा को प्रचार प्रसार मिल सकता है.

फिल्म का संगीत


इस फिल्म के ना केवल कलाकार बॉलीवुड से है बल्कि इस फिल्म का संगीत भी बॉलीवुड के सुपरहिट म्यूजिक डायरेक्टर जतिन-ललित के ललित पंडित ने दिया है. हाँ वो ही जतिन ललित जिन्होंने ना जाने कितनी हिट फिल्मो के लिए संगीत दिया है. इनके द्वारा दिए गए संगीत में जो जीता वो सिकंदर, दिल वाले दुल्हनियां ले जायेंगे, राजू बन गया जेंटलमैन, ख़ामोशी इत्यादि प्रमुख है. इस फिल्म के कुछ गाने भी प्रसिद्ध गायक शान के द्वारा गाये गए है.


फिल्म के बॉलीवुड कलाकार


तावड़ो फिल्म के प्रति जो उत्साह देखने को मिल रहा है उसका सबसे बड़ा कारण उसके वो अभिनेता है जिन्होंने ना केवल बॉलीवुड में काम किया बल्कि अपना लोहा भी मनवाया है. इसी कड़ी में सबसे पहले बात करते है इस फिल्म की मुख्य नायिका है मोहबत्ते गर्ल प्रीती झिंगयानी, हाँ वो ही प्रीती झिंगयानी जो शाहरुख़ खान और यशराज बैनर के साथ काम कर चुकी है. इतनी बड़ी अभिनेत्री का इस फिल्म के साथ जुड़ जाना इस फिल्म के लिए और समूचे राजस्थानी सिनेमा के लिए गर्व की बात है. इसके अलावा इस फिल्म में बॉलीवुड के ही प्रदीप काबरा, और पिपली लाइव फेम नत्था और बाल कलाकार डांस इंडिया डांस फेम सचिन चौधरी भी इस फिल्म की मुख्य भूमिकाओं में है
राजस्थान के सभी फिल्म प्रसंशकों को यह फिल्म अवश्य देखनी चाहिए जिससे राजस्थानी सिनेमा को मजबूती मिले और दुसरे अन्य फिल्म निर्माता भी राजस्थानी भाषा की फिल्म बनाने के लिए आगे आयें. इससे हमारी भाषा के प्रति लोगो में आदर भी उत्पन्न होगा और यह करने से राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलवाने में भी मदद मिलेगी          

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Saturday, 25 February 2017

राजस्थानी लोक संगीत

जब भी राजस्थानी संगीत का जिक्र होता है तो कुछ मीठी धुनें दिमाग में बजने लगती है. ऐसा क्यों ना हो राजस्थान का संगीत है ही इतना सुरीला. राजस्थान का संगीत और नृत्य ना केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में अपना एक विशिष्ट स्थान हैं. पूरे विश्व के लोग इसे सराहते है. राजस्थान का संगीत ना केवल अपने गानों के लिए अपितु उन पुरातन वाद्य यंत्रो के लिए भी प्रसिद्ध है जो इसमें बजाये जाते है.  
ये वाद्य यंत्र अलग अलग प्रकार के होते है कुछ तारों की सहायता से बजाये जाते है कुछ को फूँक मार कर भी बजाय जाता है और खडताल तो सिर्फ 2 लकड़ी के पट्टियों से मिलकर बजाया जाता है. राजस्थानी संगीत को अलग अलग समुदायों के लोग प्रस्तुत करते है |   

जीवन के हर पक्ष के लिए संगीत

राजस्थान की जीवन शैली में राजस्थान का संगीत रक्त के सामान बहता है तथा लोगो के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है. जीवन के कर क्षण के लिए राजस्थान का संगीत गाया व बजाया जाता है  चाहे वह शादी हो भक्ति का माहौल हो या कोई उत्सव हो. राजस्थान के गीत जीवन के बहुत से पहलुओं को छूते है, बहुत से ऐसे गीत है जो राजस्थान की रोजमर्रा के जीवन को दर्शाते है जैसे गोरबंद ( यह गीत राजस्थान के ऊंटों पर लिखा गया है ), बन्ना (राजस्थानी शादी में दुल्हे का वर्णन करता एक गीत), या किसी की याद में गया जाने वाला हिचकी गीत और केसरिया बालम को कैसे भूल सकते है जो राजस्थान के अतिथि सत्कार को बतलाता है. इन कुछ गानों के अतिरिक्त भी बहुत से ऐसे गीत है जो राजस्थानी  जीवन का सुन्दर चरित्र वर्णन करते है.

कलाकारों के समुदाय

राजस्थान के बहुत से समुदाय राजस्थानी संगीत की सेवा कर रहे है. ये जातियां अपनी अलग अलग विधा के लिए जानी जाती है. राजस्थानी संगीत के मशहूर होने के पीछे एक कारण इन जातीय घरानों का बहुत योगदान है, राजस्थान के बहुत सी जातियां संगीत के लिए जानी जाती है जैसे लंगा जाति, मांगनियार जाति, सपेरा, ढोली, भोपा, व जोगी इत्यादि. राजस्थान के 2 मुख्य समुदाय जो संगीत के लिए जाने जाते है वो निम्न है
  • लंगा समुदाय
  • मांगनियार समुदाय

लंगा समुदाय

लंगा समुदाय के अधिकांश लोग राजस्थान के बाड़मेर के गाँव बरनवा में जिले में निवास करते है. इस समुदाय के कलाकार मुस्लिम धर्म से जुड़े हुए है और इस समुदाय के लोग समस्त विश्व में जाते है और अपनी कला को प्रदर्शित करते है. लंगा जाति के लोग पाकिस्तान के सिंध प्रांत से आकर राजस्थान में बसे है. बुन्दू खान लंगा, लंगा जाति के एक विश्व प्रशिद्ध कलाकार है    

मांगनियार समुदाय

मांगनियार समुदाय के लोग भी मुस्लिम धर्म से सम्बन्ध रखते है और ये भी पाकिस्तान के सिंध प्रांत से आकर पश्चिमी राजस्थान  के कुछ जिलों में बस गए. इस जाति के ज्यादातर लोग जैसलमेर और बाड़मेर में निवास करती है. मांगनियार समुदाय के लोग पाकिस्तान में भी बहुतायत में निवास करते है, पाकिस्तान के थारपारकर, मीरपुर खास, सुजवाल और हैदराबाद में निवास करते है, मामे खान इस जाति एक एक विश्व प्रशिद्ध कलाकार है.
इन संगीत के घरानों के उत्थान में राजस्थान के कोमल कोठारी का बहुत बड़ा योगदान हैं. कोमल कोठारी ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलवाई और उन्हें राज्य में आगे बढ़ाने के लिए बहुत संघर्ष किया. उन्ही की बदौलत आज राजस्थानी कलाकार सम्पूर्ण विश्व में अपना लोहा मनवा चुके है |         

राजस्थान के प्रशिद्ध वाद्य यंत्र   

राजस्थान के संगीत के उत्थान में राजस्थानी संगीत वाद्य यंत्रो का भी एक अपना अलग योगदान है. यह वाद्य यंत्र सभी लोगो को मंत्र मुग्ध कर देते है या अलग अलग प्रकार के होते है जैसे कुछ में तार होते है और कुछ को फूँक देकर बजाया जाता है . सारंगी, मोरचंग, कामयेचा और एक तारा एक तार के वाद्य है.      
Morchang


Kamicha


Sarangi

Ektara







राजस्थानी संगीत में ताल वाद्यों के रूप में खड़ताल और ढोलक का मुख्य उपयोग होता है

राजस्थान की नृत्य कलाएं

राजस्थान अपने नृत्य कलाओं के लिए भी जाना जाता है, कालबेलिया, घूमर, अग्नि नृत्य आदि राजस्थान की धरोहर है. कालबेलिया नृत्य कालबेलिया समुदाय के द्वारा किया जाता है. कालबेलिया समुदाय सांपो को पकड़ने के लिए जाना जाता है अत: उनके नृत्य में भी उसकी झलक मिल जाती है. इस समुदाय के लोगो को जोगी और सपेरा भी कहा जाता है   

राजस्थान के संगीत की विरासत को किसी पहचान की आवश्यकता नहीं है. राजस्थान का स्थान सम्पूर्ण भारत की संस्कृति में महत्वपूर्ण है, आवश्यकता केवल इस विरासत के संरक्षण तथा इसके उत्थान के लिए और कदम उठाने की है |

Read this Blog In English Here -

Rajasthan Folk Music

Tuesday, 21 February 2017

Rajasthani Language Literature: Short history
In previous posts, we knew about various aspects of language, and we also knew about Rajasthani language history, distribution, all the dialects of Rajasthan and we also discussed the challenges Rajasthani language is facing. Today we will talk about the rich literature of Rajasthan.
 Rajasthani Language Literature

Rajasthani language literature started from the 11th century when Maru-Gurjari language was developed. This Rajasthani literature can be divided into three eras on the basis of time.
  1. Early period (1100-1450)
  2. Medieval period (1450-1850)
  3. Modern period (1850-1950)
Another classification of the Rajasthani literature can be done on the basis of different forms. This difference is made on the style and the themes of the written literature.  It can be divided into following parts.
  • Rajasthani Jain Literature
  • Rajasthani Charan Literature
  • Rajasthani Saint Literature
  • Rajasthani Folk Literature
We will discuss first Rajasthani Literature history on the basis of time.

EARLY PERIOD (1100-1450)

Earlier before 1169, no written literature of Rajasthani is available because at that time it was primarily used as oral language only. So early period of Rajasthani literature starts from the 11th century and lasts till mid-14th century. Literature of Jain scholars dominated this era. Main work of Jain scholars of  early period is as follows
  • Vijresen Suri written Bharatvarsh war Bahubali Ghor
  • Bharteswar Bahubali Raas written by Shalibhadra Suri
  • Jiyadarya Raas by Asig
  • Padmawati Chaupai by Jinprabha Suri
  • Stulibhadra Phag authored by Hemraj
  • Gyan Manjari by Vijhana
Some non-Jain literature was also drafted in this early period which is as follows
  • Prithviraj Raso by Chandbardai in 12th century
  • Achaldas Khichi ri Vachnika by Gadan Shivdas
  • Visaldeo Raas by Narpati Nath
  • Ranmall Chanda by Shridhan

Medieval period (1450-1850)

Medieval era of Rajasthani Literature starts from 1450. It is considered as a golden period for Rajasthani Literature. A lot of text was written at this time.  Some of the famous work of that period is as follows.
  • In the year 1455  Padmanabh wrote Kanhadade Prabandh. It was considered as an encyclopaedia of that time.
  • Famous literature work Dhola Maru was written in this period in the year 1473 by Kallol.
  • Hammirayan was written by Bhandari Vyas in the year 1481
  • Buddhi Raso was written by Jallah in the year 1568
  • In the 17th century, Khumman Raso was written by Dalpat
  • Halan Jhalan ra Kundaliya was written by Bairath Isardas

Modern period of rajasthani literature (1850 to 1950)

The modern period of Rajasthani literature started from the year 1850. Many of the literature published in this modern era. But still, there were a lot of unpublished literature which made surveying of Rajasthani literature difficult.
  • Suryamal Mishra of Bundi wrote Vansh Bhaskar and Veer Satsai, in middle of 19th century. Suryamal Mishra was also called Bhusan of Rajasthan.
  • In similar period Alwar’s Ramnath Kavya wrote Draupadi Vinaya and Pabuji ra Soratha.
  • Swarup Das, a Dadupanthi scholar, wrote Pandava Yashendu Chandrika.
  • In 19th century Maharaja Chatur singh ji translated Patanjali’s Yogsutra and Geeta into Mewari.
  • Meghraj Mukul composed poem Sainani.


Classification on basis of different forms of literature of Rajasthan

The above classification of Rajasthani literature is based on the time. We knew about the famous writings of the various eras. A lot of development happened in Rajasthani literature from initial earlier period to modern period. Now we will look into the classification based on the form of literature art.  


Rajasthani jain literature

Literature written by various Jain scholars is called Jain literature. In an earlier era of Rajasthani literature role of Jain literature is immense. This literature is stored in ancient Jain temples. The famous authors of that time were Hemchandra Suri, Hrishivardhan Suri and Hemratna Suri.


Rajasthani Charan Literature

The Role of Charan community in Rajasthani literature is great. They have expounded the bravery stories of Rajput Kings. Followings are few authors of Charan community and their work.
  • Veer Bhayan was written by Baadar Dhaadi.
  • Prithviraj Raso was written by Chandbardai
  • Nainsiri Khyat wrote Nainsi
  • Bankidas wrote Bankidas ri Khyat
  • In poetry Dhola Maru ra Doha

Rajasthani Saint Literature

Rajasthan has produced many saints, like Meerabai, Saint Dadu, Pabuji, etc. Rajasthani Saints also produced some historical literature some of them are as follows
  • Meera ki Padavali
  • Daddu ki Vaani
  • Narsingh ji ki Vaani
  • Ram Charan ji ki Vaani

Rajasthani folk literature


Rajasthan is full of its folk culture. A lot of folk idioms, poems are famous in Rajasthan. This folk literature is available in folk songs, folk stories, etc.

Hence we see Rajasthan’s Literature is a vibrant and rich and it touches all aspects of life. Whether it is an occasion of happiness or sad moments, Rajasthan’s literature in the form of poems, songs, text or drama touches every thing. We all Rajasthani should be proud of our literature.

Friday, 17 February 2017

भारत ही नहीं बल्कि " पाकिस्तान " के भी कुछ क्षेत्र में बोली जाती है राजस्थानी

"सोने री धरती अठे, और चाँदी रो आसमान रंग रंगीलो रस भरयो, म्हारो प्यारो राजस्थान...केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारे देश"

 राजस्थानी भाषा का इतिहास और आगे की चुनौतियाँ (भाग 1)

राजस्थानी लोक गीत केसरिया बालम की ये कुछ पंक्तियाँ राजस्थान के बारे में एक संक्षिप्त परिचय तो दे ही देती  है, राजस्थान जिसकी धरती सोने सी है और आसमान चांदी सा और यहाँ चारों तरफ अलग अलग रंग भी दिखाई दे ही जाते है | ये चंद पंक्तियाँ राजस्थानी भाषा के बारे में भी ये बता ही देती है की यहाँ की भाषा कितनी समृद्ध है | राजस्थान के समृद्धशाली इतिहास में राजस्थानी भाषा का बहुत महत्व रहा है | 
राजस्थान का इतिहास राजाओं और उनके राज्यों के इतिहास के बिना अधूरा है | राजस्थान पर बहुत से शाही घरानों ने राज किया जिनको महाराजा, सवाई, महाराणा इत्यादि नामो से जाना जाता है | राजस्थान पर मुख्यतया शासन राजपूत शासकों ने किया, अतः राजस्थान को स्वतंत्रता से पूर्व राजपूताना के नाम से भी जाना जाता था | इन राजाओं के बारे में बहुत सा इतिहास कविताओं के रूप में स्थानीय बोलियों जैसे मारवाड़ी, शेखावाटी, मेवाती, बागड़ी, हाडौती, मेवाड़ी, और धुधाड़ी इत्यादि में उपलब्ध है | इन कविताओं में कवियों ने राजाओं के वीरता को अपनी कलम से कागज़ पर उतारा हैं | ऐसी समस्त बोलियों कि राजस्थानी भाषा के विकास में समान हिस्सेदारी है | राजस्थानी भाषा में लिखा यह साहित्य ना केवल राजस्थानी भाषा की विरासत है अपितु यह सम्पूर्ण राजस्थान के लिए भी एक गर्व का विषय है |

         

  • राजस्थानी भाषा का इतिहास 

राजस्थानी भाषा एक भारतीय आर्य भाषा है जिसका जन्म संस्कृत से हुआ है | भारतीय भाषा कुछ भाषा विशेषज्ञों का मानना है की राजस्थानी भाषा का विकास प्राकृत भाषा की शाखा डिंगल से हुआ है | डिंगल से मारवाड़ी और गुजराती भाषा का विकास हुआ है, वहीं संस्कृत की एक शाखा पिंगल से खड़ी हिंदी और ब्रिज भाषा विकसित हुए, भाषा विशेषज्ञों के अनुसार राजस्थान की प्रमुख भाषा मारवाड़ी है (मारवाड़ी का पहले नाम मरुभाषा कहा गया था ) | डॉ सुनीति कुमार चटर्जी ने राजस्थानी भाषा के लिए मारवाड़ी या डिंगल शब्दों का प्रयोग किया है |



  • राजस्थानी भाषा का वितरण 

भारत में भाषा के वितरण को जानने के लिए जॉर्ज ग्रियर्सन ने एक सर्वे करवाया था, इस सर्वेक्षण के अनुसार राजस्थानी भाषा ना केवल राजस्थान में बोली जाती है अपितु यह गुजरात, पंजाब तथा हरियाणा के कुछ भागो में भी बोली जाती है | भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के कुछ क्षेत्र जैसे बहावलपुर, थारपारकर तथा मुल्तान प्रान्त में भी राजस्थानी भाषा को बोला जाता है उसके पश्चात बहावलपुर और मुल्तान में यह रियासती और सरीकी भाषा के साथ मिश्रित हो जाती है | उसके बाद यह पाकिस्तान के सुक्कुर और उमरकोट में  सिन्धी भाषा के साथ संपर्क में आती है | यहीं नहीं राजस्थानी भाषा लाहौर में भी कुछ भागो में बोली जाती है |

यह राजस्थानी भाषा का इतिहास और आगे की चुनौतियाँ नामक ब्लॉग पोस्ट का प्रथम भाग है | 

इस ब्लॉग को अंग्रेजी में यहाँ पढ़े - 

Rajasthani Language history and challenges (part 1) 

Rajasthani Language history and challenges (part 1)

"सोने री धरती अठे, और चाँदी रो आसमान रंग रंगीलो रस भरयो, म्हारो प्यारो राजस्थान...केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारे देश"



Rajasthan, The Royal land, the lines above tell everything about this historical province of India. These lines state that Rajasthan's land is as pure as gold, the sky is as vibrant as silver and Rajasthan is a colourful cultural region. These lines are from famous Rajasthani folk song "Kesaria Balam". These lines point at the fact that how rich is the Rajasthani language. Rajasthan’s history is very prosperous, and the role of Rajasthani language is very influential in it. 



The ancient Rajasthan was a group of royal kingdoms ruled by dynasties named like Maharaja, Sawai, Maharana, etc. A lot of Maharajas born here and ruled over it. The dominant rulers were from the Rajput community. Therefore the state was known as Rajputana in the pre-independence era. A lot of literature about those Kings is available in the form of poetry in local tongues like marwadi, Shekhawati, mewati, bagri, harauti, mewari, dhundhari, ahirwati etc. Where poets have expounded their stories, about the bravery of kings like heroes. All of such local tongues have equal contribution in the overall framework of Rajasthani language. This literature in Rajasthani language is the heritage as well as proud of whole Rajasthan.

  • History of Rajasthani Language

Rajasthani language is an Indo-Aryan language. Rajasthani language history starts long back from Sanskrit. Some linguists believe that Rajasthani language is developed from “Prakrit” language. One branch from “Prakrit” language derived which is called “Dingle.” Another Branch was formed from Sanskrit which is called “Pingle.”. From “Dingle” Gujarati and Marwadi language were born.  From “Pingle.” branch Hindi and Brij language were developed. According to linguists primary language of Rajasthan is Marwadi (which was called earlier “Marubhasha” ). Dr Suniti Kumar Chatterjee has used words “Marwadi” or “Dingle” for Rajasthani Language. 

  • Distribution of Rajasthani Language

Linguistic Survey of India was done by George A. Grierson. This survey was done to know how languages are distributed in India. According to Grierson Rajasthani is not only spoken in Rajasthan, but it is found in some parts of Gujarat, Haryana and Punjab. Even some places in Pakistan such as Bahawalpur, Tharparkar and Multan provinces also speaks Rajasthani language.  Then Rajasthani language merges with Riasti and Saraiki in Bahawalpur and Multan parts, respectively. It comes in contact with Sindhi from Dera Rahim Yar Khan through Sukkur and Ummerkot. Rajasthani Language is also common in some areas of Lahore.

This is the first part of this blog post Rajasthani Language history and challenges 


Wednesday, 15 February 2017

भाषा और मानव सभ्यता

भाषा और मानव सभ्यता
मानव सभ्यत्ता की शुरुवात से मनुष्य की सबसे मूल आवश्यकताओं में एक आवश्यकता एक मनुष्य से दुसरे मनुष्य से संपर्क स्थापित करने की रही | इस आवश्यकता के लिए मनुष्य ने बहुत से प्रयोग किये जैसे उसने चिन्हों का उपयोग किया जो उसने पत्थर पर या मिट्टी पर बनाये | मनुष्य ने समय के साथ साथ एक भाषा जैसे सशक्त माध्यम को विकसित किया | सदियों से मानवों ने बहुत सी भाषाओं को विकसित किया | जैसे संस्कृत से लेकर हिंदी, फ़ारसी से लेकर उर्दू और पश्चिमी भाषाओ जैसे अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन इत्यादि हजारों भाषाओं का विकास हुआ     
आज यदि विश्व की बात करें तो सम्पूर्ण विश्व में लगभग 5000 से लेकर 7000 भाषायें बोली जाती है, जो बताती है की मानव इतिहास में भाषा का विकास होने से सम्पूर्ण मानव जाति का भी विकास हुआ है  |
भारतीय दृष्टिकोण 
यहाँ हम भारत के दृष्टिकोण से देखते है तो हम पाते है कि भारत विविधताओं से भरा देश है | यहाँ विभिन्न प्रकार की भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधता है | हर राज्य की अपनी एक अलग भाषा है, राजस्थानी लोग राजस्थानी बोलते है, बंगाली बांग्ला बोलते है, केरल में मलयालम बोलते है तथा अन्य राज्यों के लोग अपनी अपनी भाषा में बोलते हैं |
2001 की जनगणना के अनुसार भारत में 122 मुख्य भाषाएं है और 1599 अन्य भाषाएं है | इन भाषाओं में 30 भाषायें ऐसी है जिनको बोलने वालो की संख्या लाखों में है | भारत में सभी भाषाओ में अं
ग्रेजी और फारसी जैसी विदेशी भाषाओं का अपभ्रंश पाया जाया है | भारत में अधिकाँश लोग बहुभाषी होते है जो अपनी मूल भाषा के साथ साथ हिंदी या अंग्रेजी भी बोल सकते है, ऐसे में क्षेत्रीय भाषाओ की  महत्ता मुख्य भाषाओं से कम नहीं है |
भारतीय भाषाओं के समूह 
भारत में भाषाओं को इतिहास एंव भौगोलिकता के अनुसार मुख्य तया निम्न वर्गो में वर्गीकृत किया गया है 
•भारतीय आर्य भाषा समूह 
यह भारतीय भाषाओ का सबसे विराट समूह है 70 प्रतिशत से अधिक भारतीय इस समूह की भाषाओं को बोलते है | हिंदी इस समूह की प्रमुख भाषा है अन्य भाषाओ में राजस्थानी, बांग्ला, गुजराती, पंजाबी प्रमुख है  |
द्रविड़ भाषा समूह 
यह दूसरा सबसे बड़ा समूह है इस समूह में दक्षिण भारतीय भाषाएं जैसे तमिल, मलयालम, तेलुगु इत्यादि है |
इन भाषा समूहों के अलावा भारत में बहुतायत में लोग अंग्रेजी भी बोलते है | असल में अंग्रेजी कई बार भारत के भिन्न भाषी लोगो को जोड़ने वाली भाषा बन जाती है, सभी प्रकार की उच्च शिक्षा भी अंग्रेजी माध्यम में ही उपलब्ध है इस प्रकार भारत में अंग्रेजी की महत्ता बहुत बढ़ गई है 

क्षेत्रीय भाषाओं का महत्त्व 
क्षेत्रीय भाषाएं भारत की विविधता को प्रदर्शित करती है और इसलिए हम भारतीय लोगो का यह कर्त्तव्य बनता है की हम मातृ भाषा की रक्षा करें | आज के युग में राजस्थान जैसे राज्य में लोग राजस्थानी भाषा के अपेक्षा हिंदी व अंग्रेजी को अधिक महत्त्व देने लगे है यह ही नहीं लोगो को राजस्थानी भाषा बोलने में भी लज्जा की अनुभूति होती है | वहीँ हम देखते है की अन्य राज्यों जैसे पंजाब, गुजरात इत्यादि राज्यों या दक्षिण भारत के राज्य अपनी भाषा को अत्यधिक महत्त्व देते है और अपनी भाषा में ही आपस में बात करते है |  कुछ लोग राजस्थानी बोलने वालो को उपेक्षा के दृष्टिकोण से देखते है, तथा अपने बच्चो को भी घर में हिंदी बोलने के लिए बाध्य करते है | हमें चाहिए कि हम अपनी भाषा, लोक साहित्य, लोक संगीत की रक्षा करें और उन्हें आगे प्रोत्साहित करें |
इस आर्टिकल को अंग्रेजी में यहाँ पढ़े -  The Language Evolution