राजस्थानी भाषा साहित्य : संक्षिप्त इतिहास
पिछली पोस्ट में हमने भाषा और राजस्थानी भाषा के इतिहास, उसका वितरण एवं यहाँ बोली जाने वाली समस्त बोलियों के बारे में पढ़ा और राजस्थानी भाषा द्वारा जो चुनौतियाँ झेली जा रही है उसके बारे में भी जाना | आज हम राजस्थान के समृद्ध साहित्य के बारे में बात करेंगे.
राजस्थानी साहित्य का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है | इसकी शुरुआत 11 वी शताब्दी से हुए जब मरू-गुर्जरी भाषा का विकास हुआ | राजस्थानी साहित्य को समय के आधार पर 3 भागो में विभाजित किया गया है |
- प्रारंभिक दौर (1100-1450)
- मध्य दौर (1450-1850)
- आधुनिक दौर (1850 – 1950)
राजस्थानी साहित्य का उसके विषय और शैली के अनुसार भी निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया गया है –
- राजस्थानी जैन साहित्य
- राजस्थानी चारण साहित्य
- राजस्थानी संत साहित्य
- राजस्थानी लोक साहित्य
हम सबसे पहले समय के आधार पर किए गए वर्गीकरण पर बात करते हैं |
प्रारंभिक दौर
राजस्थानी भाषा का सन 1169 से पूर्व का कोई भी लिखित साहित्य उपलब्ध नहीं है क्योंकि उस समय यह भाषा केवल बोली जाती थी. इसलिए राजस्थानी साहित्य की शुरुआत 11 वी शताब्दी में मानी जाती है. राजस्थानी भाषा के साहित्य का शुरुआती काल सन 1100 से लेकर चौदहवीं शताब्दी के मध्य तक माना जाता है. इस काल में मुख्य तया जैन धर्म के विद्वानों ने राजस्थानी भाषा के साहित्य की तरफ काफी कार्य किया, जैन विद्वानों द्वारा रचित साहित्य निम्न प्रकार का है
- विज्रसेन सूरी द्वारा रचित भारतवर्ष वर बाहु बली घोर
- शालिभद्र सूरी द्वारा रचित भार्तेस्वर बाहुबली रास
- असिग द्वारा रचित जियादार्य रास
- जिन्प्रभा सूरी द्वारा पद्मावती चौपाई
- हेमराज द्वारा रचित स्तुलिभाद्र फाग
- विझाना द्वारा रचित ज्ञान मंजरी
इस काल में कुछ जैन विद्वानों के अतिरिक्त दूसरे लोगों ने भी कुछ साहित्य की रचना की और जो की निम्न है.
- 12 वी सदी में चंदबरदाई द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो
- गदन शिवदास द्वारा रचित खिंची री वचनिका
- नरपति नाथ द्वारा रचित विसाल रास
- श्रीधन द्वारा रचित रान्माल चंदा
मध्यकाल दौर
राजस्थानी साहित्य के मध्यकाल की शुरुआत सन 1450 से मानी जाती है, इस काल को राजस्थानी साहित्य का स्वर्णिम काल माना जाता है. इस काल में बहुत सा साहित्य लिखा गया. उनमे से कुछ कृतियाँ निम्न है
- साल 1455 में पद्मनाभ ने कन्हाद्दे प्रबंध लिखी. यह उस समय की एक ज्ञानकोष मानी जाती है
- ढोला मारू जैसी मशहूर कृति कल्लोल द्वारा सन 1473 में लिखी गयी
- भंडारी व्यास द्वारा 1481 में हम्मिरायण लिखी गई
- बुद्धि रासो को सन 1568 में जल्लाह के द्वारा लिखा गया
- खुम्मान रासो दलपत द्वारा 17 वी शताब्दी में लिखा गया
- हालन झालण रा कुण्डलिया बिरथ इस्र्दास द्वारा लिखी गयी थी
आधुनिक काल में राजस्थानी साहित्य
राजस्थानी साहित्य का आधुनिक काल सन 1850 से शुरू हुआ. इस काल में बहुत से साहित्य प्रकाशित हुए और फिर भी ऐसे भी कई साहित्य है जो प्रकाशित नहीं हो सके जिनसे राजस्थानी साहित्य का सर्वे करने में बहुत समस्या हुई |
इस काल में लिखे गए कुछ मुख्य साहित्य निम्न है –
- उन्नीसवी शताब्दी में बूंदी के सूर्यमल मिश्र ने वंश भास्कर और वीर सतसई जैसे साहित्य लिखे. सूर्यमल मिश्र को राजस्थान का भूषण भी कहा जाता है.
- इसी काल में अलवर के रामनाथ काव्या ने द्रौपदी विनया और पाबूजी रा सोराथा लिखी
- दादूपंथी विद्वान स्वरुप दास ने पांडव यशेदु चन्द्रिका लिखी
- उन्नीसवी शताब्दी में महाराजा चतुर सिंह जी ने पतंजलि योगसूत्र और गीता को मेवाड़ी भाषा में अनुवादित किया
- मेघराज मुकुल ने सेनानी नमक कविता को स्वरबद्ध किया
शैली व विषय के आधार पर राजस्थानी साहित्य का वर्गीकरण
राजस्थानी साहित्य का उपरोक्त वर्गीकरण समय के आधार पर किया गया है . हमने देखा की अलग अलग समयावधि में बहुत से साहित्यिक कार्य हुए. राजस्थानी साहित्य में शुरू के युग से आधुनिक काल तक बहुत विकास हुआ. विषय और शैली के आधार पर भी एक वर्गीकरण किया गया है. वह वर्गीकरण निम्न प्रकार से है.
राजस्थानी जैन साहित्य
जैन विद्वानों द्वारा लिखित साहित्य को जैन साहित्य बोला जाता है. प्रारम्भ में जैन समुदाय का राजस्थानी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान रहा. यह साहित्य विभिन्न जैन मंदिरों में सहेज कर रखा गया है. उस समय के प्रमुख साहित्यकारों में हेमचन्द्र सूरी, हृशिवर्धन सूरी और हेमरतन सूरी है |
जैन विद्वानों द्वारा लिखित साहित्य को जैन साहित्य बोला जाता है. प्रारम्भ में जैन समुदाय का राजस्थानी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान रहा. यह साहित्य विभिन्न जैन मंदिरों में सहेज कर रखा गया है. उस समय के प्रमुख साहित्यकारों में हेमचन्द्र सूरी, हृशिवर्धन सूरी और हेमरतन सूरी है |
राजस्थानी चारण साहित्य
चारण समुदाय का राजस्थानी साहित्य के विकास में बहुत योगदान रहा है. चारण समुदाय के लोगों ने राजपूत राजाओं की वीरता और उनके रहन सहन का उल्लेख अपनी रचनाओं में किया है. चारण समाज के कुछ लेखक निम्न प्रकार से है
चारण समुदाय का राजस्थानी साहित्य के विकास में बहुत योगदान रहा है. चारण समुदाय के लोगों ने राजपूत राजाओं की वीरता और उनके रहन सहन का उल्लेख अपनी रचनाओं में किया है. चारण समाज के कुछ लेखक निम्न प्रकार से है
- बादर धाडी ने वीर भायां नामक रचना लिखी
- चंदबरदाई द्वारा पृथ्वीराज रासो नामक रचना लिखी गयी
- नैंसी ने नैंसी री ख्यात नामक रचना लिखी
- बांकी दास ने बन्किदास री ख्यात नामक रचना लिखी
- ढोला मारू रा दोहा भी चारण समुदाय से प्राप्त हुए
राजस्थानी संत समाज साहित्य
राजस्थान की भूमि ने बहुत से संतो को जन्म दिया है, जैसे मीरा बाई, राम स्नेही सम्प्रदाय के राम चरण जी इत्यादि. इन संतो ने भी साहित्य को अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है. संतो द्वारा साहित्य में दिए योगदान के कुछ उदाहरण निम्न प्रकार से है
- मीरा की पदावली
- दादू की वाणी
- नरसिंग जी की वाणी
- राम चरण जी की वाणी
राजस्थान की लोक कलाएं पूरे विश्व में लोकप्रिय है, विश्व में राजस्थान के लोक संगीत का अपना एक विशिष्ट स्थान है. उसी प्रकार राजस्थान की लोक साहित्य का भी एक अपना स्थान है. लोक साहित्य में प्रचलित कहावतें, कहानियाँ इत्यादि को सम्मिलित किया जाता है |
इस प्रकार हम देखते है की राजस्थान का साहित्य एक समृद्ध साहित्य है, राजस्थान के साहित्य ने जीवन के हर पक्ष को छूआ है. चाहे वह ख़ुशी का मौका हो अथवा गम का राजस्थान का साहित्य कविताओं गीतों, गद्य, व् पद्य के माध्यम से जीवन को परिचय करवाता है. समस्त राजस्थानियों का यह कर्तव्य है की अपने साहित्य की रक्षा करें और उस पर गर्व करें |
No comments:
Post a Comment