Saturday 25 February 2017

राजस्थानी लोक संगीत

जब भी राजस्थानी संगीत का जिक्र होता है तो कुछ मीठी धुनें दिमाग में बजने लगती है. ऐसा क्यों ना हो राजस्थान का संगीत है ही इतना सुरीला. राजस्थान का संगीत और नृत्य ना केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में अपना एक विशिष्ट स्थान हैं. पूरे विश्व के लोग इसे सराहते है. राजस्थान का संगीत ना केवल अपने गानों के लिए अपितु उन पुरातन वाद्य यंत्रो के लिए भी प्रसिद्ध है जो इसमें बजाये जाते है.  
ये वाद्य यंत्र अलग अलग प्रकार के होते है कुछ तारों की सहायता से बजाये जाते है कुछ को फूँक मार कर भी बजाय जाता है और खडताल तो सिर्फ 2 लकड़ी के पट्टियों से मिलकर बजाया जाता है. राजस्थानी संगीत को अलग अलग समुदायों के लोग प्रस्तुत करते है |   

जीवन के हर पक्ष के लिए संगीत

राजस्थान की जीवन शैली में राजस्थान का संगीत रक्त के सामान बहता है तथा लोगो के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है. जीवन के कर क्षण के लिए राजस्थान का संगीत गाया व बजाया जाता है  चाहे वह शादी हो भक्ति का माहौल हो या कोई उत्सव हो. राजस्थान के गीत जीवन के बहुत से पहलुओं को छूते है, बहुत से ऐसे गीत है जो राजस्थान की रोजमर्रा के जीवन को दर्शाते है जैसे गोरबंद ( यह गीत राजस्थान के ऊंटों पर लिखा गया है ), बन्ना (राजस्थानी शादी में दुल्हे का वर्णन करता एक गीत), या किसी की याद में गया जाने वाला हिचकी गीत और केसरिया बालम को कैसे भूल सकते है जो राजस्थान के अतिथि सत्कार को बतलाता है. इन कुछ गानों के अतिरिक्त भी बहुत से ऐसे गीत है जो राजस्थानी  जीवन का सुन्दर चरित्र वर्णन करते है.

कलाकारों के समुदाय

राजस्थान के बहुत से समुदाय राजस्थानी संगीत की सेवा कर रहे है. ये जातियां अपनी अलग अलग विधा के लिए जानी जाती है. राजस्थानी संगीत के मशहूर होने के पीछे एक कारण इन जातीय घरानों का बहुत योगदान है, राजस्थान के बहुत सी जातियां संगीत के लिए जानी जाती है जैसे लंगा जाति, मांगनियार जाति, सपेरा, ढोली, भोपा, व जोगी इत्यादि. राजस्थान के 2 मुख्य समुदाय जो संगीत के लिए जाने जाते है वो निम्न है
  • लंगा समुदाय
  • मांगनियार समुदाय

लंगा समुदाय

लंगा समुदाय के अधिकांश लोग राजस्थान के बाड़मेर के गाँव बरनवा में जिले में निवास करते है. इस समुदाय के कलाकार मुस्लिम धर्म से जुड़े हुए है और इस समुदाय के लोग समस्त विश्व में जाते है और अपनी कला को प्रदर्शित करते है. लंगा जाति के लोग पाकिस्तान के सिंध प्रांत से आकर राजस्थान में बसे है. बुन्दू खान लंगा, लंगा जाति के एक विश्व प्रशिद्ध कलाकार है    

मांगनियार समुदाय

मांगनियार समुदाय के लोग भी मुस्लिम धर्म से सम्बन्ध रखते है और ये भी पाकिस्तान के सिंध प्रांत से आकर पश्चिमी राजस्थान  के कुछ जिलों में बस गए. इस जाति के ज्यादातर लोग जैसलमेर और बाड़मेर में निवास करती है. मांगनियार समुदाय के लोग पाकिस्तान में भी बहुतायत में निवास करते है, पाकिस्तान के थारपारकर, मीरपुर खास, सुजवाल और हैदराबाद में निवास करते है, मामे खान इस जाति एक एक विश्व प्रशिद्ध कलाकार है.
इन संगीत के घरानों के उत्थान में राजस्थान के कोमल कोठारी का बहुत बड़ा योगदान हैं. कोमल कोठारी ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलवाई और उन्हें राज्य में आगे बढ़ाने के लिए बहुत संघर्ष किया. उन्ही की बदौलत आज राजस्थानी कलाकार सम्पूर्ण विश्व में अपना लोहा मनवा चुके है |         

राजस्थान के प्रशिद्ध वाद्य यंत्र   

राजस्थान के संगीत के उत्थान में राजस्थानी संगीत वाद्य यंत्रो का भी एक अपना अलग योगदान है. यह वाद्य यंत्र सभी लोगो को मंत्र मुग्ध कर देते है या अलग अलग प्रकार के होते है जैसे कुछ में तार होते है और कुछ को फूँक देकर बजाया जाता है . सारंगी, मोरचंग, कामयेचा और एक तारा एक तार के वाद्य है.      
Morchang


Kamicha


Sarangi

Ektara







राजस्थानी संगीत में ताल वाद्यों के रूप में खड़ताल और ढोलक का मुख्य उपयोग होता है

राजस्थान की नृत्य कलाएं

राजस्थान अपने नृत्य कलाओं के लिए भी जाना जाता है, कालबेलिया, घूमर, अग्नि नृत्य आदि राजस्थान की धरोहर है. कालबेलिया नृत्य कालबेलिया समुदाय के द्वारा किया जाता है. कालबेलिया समुदाय सांपो को पकड़ने के लिए जाना जाता है अत: उनके नृत्य में भी उसकी झलक मिल जाती है. इस समुदाय के लोगो को जोगी और सपेरा भी कहा जाता है   

राजस्थान के संगीत की विरासत को किसी पहचान की आवश्यकता नहीं है. राजस्थान का स्थान सम्पूर्ण भारत की संस्कृति में महत्वपूर्ण है, आवश्यकता केवल इस विरासत के संरक्षण तथा इसके उत्थान के लिए और कदम उठाने की है |

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Rajasthan Folk Music

Rajasthan Folk Music


Whenever we hear term Rajasthani music, some melodious tunes of Rajasthani folk music come into our mind. Rajasthani folk music is not only appreciated in India, but it is widely followed in all over the world. People admires Rajasthani music due to its purity. Rajasthan’s music not only known for its sweet songs but it is also known for its primitive-looking musical instruments.
These musical instruments are of different types some have wires and some are played by blowing air through them, and some of them are made of only two flat wooden pieces. The artists who perform these arts are from different communities.

Music for every aspect of life

Music live in the blood of people of Rajasthan. Rajasthani songs play a dominant role in people’s life. There are songs for every situation of life, like marriage, devotional music. Music can be related to anything in Rajasthan. Whether it is Gorband (a famous song on Camel), or Banna (song on bridegroom) or Hichki (song sung when we remember someone) and noted song Kesaria Balam (for welcoming guests). These songs touch everything. These are only a few songs there are tonnes of other songs too.   

Community of artists



Rajasthan has many communities which are famous for their music. They are known for their different style of music they present. Rajasthan’s music is immensely popular due to different ‘Gharanas’ are part of this music. There are many musical castes which serve the Rajasthani music like Langa, Manginiyars, Sapera, Dholi, Bhopa, Jogi, etc. These are main two Gharanas of Rajasthani Music.
  • Langa Community
  • Manginiyar Community

Langa Community

Mostly Langa community people lives in Barmer district of Rajasthan, There is a village called ‘Baranwa’ where these singers live. Langa community musicians are Muslims. They follow the mostly Muslim style of singing. Langa community is famous in all over the world, artists from this community travel all over the world to perform. Langa community anciently belonged to Sindh province of Pakistan, and they migrated to a western part of Rajasthan. Bundu Khan Langa is one of the famous artists from this community.

Manginiyar Community

Manginiyars are also Muslim community coming from Pakistan Sindh province. They mostly live in Jaisalmer and Barmer of Rajasthan. The majority of this population resides in Pakistan’s Tharparkar, Mirpur Khas, Sujawal, Hyderabad. Mame Khan is a famous Manginiyar singer.
Komal Kothari of Rajasthan of uplifted these tribes. He provided them institutionalised support and allowed them to perform outside of Rajasthan state. Now, these communities from Rajasthan travel all over the world and perform at a global level.

Primitive Musical Instruments

One of the reason because of Rajasthani music is famous is its ancient musical instruments. These instruments mesmerise everybody. They are of different types some have strings, and some are flute or bagpipers type.
Sarangi, Morchang, Kamayacha and Ektara are the string musical instrument.

Morchang


Kamicha

Sarangi

Ektara

Manginiyar and Langas have expertise on percussion instruments like khadtal and Dholak.
Khadtal

Dance Forms of Rajasthan

Rajasthan’s Ghumar dance, Kalbeliya, Firedance, etc. are the heritage of Rajasthan. They are quite popular in Rajasthan. Kalbelia dance is done by Kalbelia community. Kalbelia community is known for catching snakes, so the dance form and appearance resemble snakes. They are also called Jogi or Sapera.

Kalbelia Dance


Ghoomar dance

The musical heritage or Rajasthan is very gorgeous and needs no introduction. Rajasthan’s place in Indian culture is vital. All Rajasthani music should be encouraged. Artists should be acknowledged. So It's our duty to preserve our heritage and be proud of it. Hope you liked this blog please leave a comment.

Tuesday 21 February 2017

राजस्थानी भाषा साहित्य : संक्षिप्त इतिहास
पिछली पोस्ट में हमने भाषा और राजस्थानी भाषा के इतिहास, उसका वितरण एवं यहाँ बोली जाने वाली समस्त बोलियों के बारे में पढ़ा और राजस्थानी भाषा द्वारा जो चुनौतियाँ झेली जा रही है उसके बारे में भी जाना | आज हम राजस्थान के समृद्ध साहित्य के बारे में बात करेंगे.

राजस्थानी साहित्य का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है | इसकी शुरुआत 11 वी शताब्दी से हुए जब मरू-गुर्जरी भाषा का विकास हुआ | राजस्थानी साहित्य को समय के आधार पर 3 भागो में विभाजित किया गया है |
  1. प्रारंभिक दौर (1100-1450)
  2. मध्य दौर (1450-1850)
  3. आधुनिक दौर (1850 1950)
राजस्थानी साहित्य का उसके विषय और शैली के अनुसार भी निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया गया है –
  • राजस्थानी जैन साहित्य
  • राजस्थानी चारण साहित्य
  • राजस्थानी संत साहित्य
  • राजस्थानी लोक साहित्य
हम सबसे पहले समय के आधार पर किए गए वर्गीकरण पर बात करते हैं |
प्रारंभिक दौर
राजस्थानी भाषा का सन 1169 से पूर्व का कोई भी लिखित साहित्य उपलब्ध नहीं है क्योंकि उस समय यह भाषा केवल बोली जाती थी. इसलिए राजस्थानी साहित्य की शुरुआत 11 वी  शताब्दी में मानी जाती है. राजस्थानी भाषा के साहित्य का शुरुआती काल सन 1100 से लेकर चौदहवीं शताब्दी के मध्य तक माना जाता है. इस काल में मुख्य तया जैन धर्म के विद्वानों ने राजस्थानी भाषा के साहित्य की तरफ काफी कार्य किया, जैन विद्वानों द्वारा रचित साहित्य निम्न प्रकार का है  
  • विज्रसेन सूरी द्वारा रचित भारतवर्ष  वर बाहु बली घोर
  • शालिभद्र सूरी द्वारा रचित भार्तेस्वर बाहुबली रास
  • असिग द्वारा रचित जियादार्य रास
  • जिन्प्रभा सूरी द्वारा पद्मावती चौपाई
  • हेमराज द्वारा रचित स्तुलिभाद्र फाग
  • विझाना द्वारा रचित ज्ञान मंजरी
     इस काल में कुछ जैन विद्वानों के अतिरिक्त दूसरे लोगों ने भी कुछ साहित्य की रचना की और जो की निम्न है.
  • 12 वी सदी  में चंदबरदाई द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो
  • गदन शिवदास द्वारा रचित खिंची री वचनिका
  • नरपति नाथ द्वारा रचित विसाल रास
  • श्रीधन द्वारा रचित रान्माल चंदा
मध्यकाल दौर
राजस्थानी साहित्य के मध्यकाल की शुरुआत सन 1450 से मानी जाती है, इस काल को राजस्थानी साहित्य का स्वर्णिम काल माना जाता है. इस काल में बहुत सा साहित्य लिखा गया. उनमे से कुछ कृतियाँ निम्न है   
  • साल 1455 में पद्मनाभ ने कन्हाद्दे प्रबंध लिखी. यह उस समय की एक ज्ञानकोष मानी जाती है  
  • ढोला मारू जैसी मशहूर कृति कल्लोल द्वारा सन 1473 में लिखी गयी  
  • भंडारी व्यास द्वारा 1481 में हम्मिरायण लिखी गई
  • बुद्धि रासो को सन 1568 में जल्लाह के द्वारा लिखा गया
  • खुम्मान रासो दलपत द्वारा 17 वी शताब्दी में लिखा गया
  • हालन झालण रा कुण्डलिया बिरथ इस्र्दास द्वारा लिखी गयी थी
आधुनिक काल में राजस्थानी साहित्य
राजस्थानी साहित्य का आधुनिक काल सन 1850 से शुरू हुआ. इस काल में बहुत से साहित्य प्रकाशित हुए और फिर भी ऐसे भी कई साहित्य है जो प्रकाशित नहीं हो सके जिनसे राजस्थानी साहित्य का सर्वे करने में बहुत समस्या हुई |
इस काल में लिखे गए कुछ मुख्य साहित्य निम्न है –
  • उन्नीसवी शताब्दी में बूंदी के सूर्यमल मिश्र ने वंश भास्कर और वीर सतसई जैसे साहित्य लिखे. सूर्यमल मिश्र को राजस्थान का भूषण भी कहा जाता है.
  • इसी काल में अलवर के रामनाथ काव्या ने द्रौपदी विनया और पाबूजी रा सोराथा लिखी
  • दादूपंथी विद्वान स्वरुप दास ने पांडव यशेदु चन्द्रिका लिखी
  • उन्नीसवी शताब्दी में महाराजा चतुर सिंह जी ने पतंजलि योगसूत्र और गीता को मेवाड़ी भाषा में अनुवादित किया
  • मेघराज मुकुल ने सेनानी नमक कविता को स्वरबद्ध किया

शैली व विषय के आधार पर राजस्थानी साहित्य का  वर्गीकरण
राजस्थानी साहित्य का उपरोक्त वर्गीकरण समय के आधार पर किया गया है . हमने देखा की अलग अलग समयावधि में बहुत से साहित्यिक कार्य हुए. राजस्थानी साहित्य में शुरू के युग से आधुनिक काल तक बहुत विकास हुआ. विषय और शैली के आधार पर भी एक वर्गीकरण किया गया है. वह वर्गीकरण निम्न प्रकार से है.
राजस्थानी जैन साहित्य
जैन विद्वानों द्वारा लिखित साहित्य को जैन साहित्य बोला जाता है. प्रारम्भ में जैन समुदाय का राजस्थानी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान रहा. यह साहित्य विभिन्न जैन मंदिरों में सहेज कर रखा गया है. उस समय के प्रमुख साहित्यकारों में हेमचन्द्र सूरी, हृशिवर्धन सूरी और हेमरतन सूरी है |     

राजस्थानी चारण साहित्य
चारण समुदाय का राजस्थानी साहित्य के विकास में बहुत योगदान रहा है. चारण समुदाय के लोगों ने राजपूत राजाओं की वीरता और उनके रहन सहन का उल्लेख अपनी रचनाओं में किया है. चारण समाज के कुछ लेखक निम्न प्रकार से है
  • बादर धाडी ने वीर भायां नामक रचना लिखी
  • चंदबरदाई द्वारा पृथ्वीराज रासो नामक रचना लिखी गयी
  • नैंसी ने नैंसी री ख्यात नामक रचना लिखी
  • बांकी दास ने बन्किदास री ख्यात नामक रचना लिखी
  • ढोला मारू रा दोहा भी चारण समुदाय से प्राप्त हुए
राजस्थानी संत समाज साहित्य
राजस्थान की भूमि ने बहुत से संतो को जन्म दिया है, जैसे मीरा बाई, राम स्नेही सम्प्रदाय के राम चरण जी इत्यादि. इन संतो ने भी साहित्य को अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है. संतो द्वारा साहित्य में दिए योगदान के कुछ उदाहरण निम्न प्रकार से है
  • मीरा की पदावली
  • दादू की वाणी
  • नरसिंग जी की वाणी
  • राम चरण जी की वाणी  
राजस्थानी लोक साहित्य
राजस्थान की लोक कलाएं पूरे विश्व में लोकप्रिय है, विश्व में राजस्थान के लोक संगीत का अपना एक विशिष्ट स्थान है. उसी प्रकार राजस्थान की लोक साहित्य का भी एक अपना स्थान है. लोक साहित्य में प्रचलित कहावतें, कहानियाँ इत्यादि को सम्मिलित किया जाता है |

इस प्रकार हम देखते है की राजस्थान का साहित्य एक समृद्ध साहित्य है, राजस्थान के साहित्य ने जीवन के हर पक्ष को छूआ है. चाहे वह ख़ुशी का मौका हो अथवा गम का राजस्थान का साहित्य कविताओं गीतों, गद्य, व् पद्य के माध्यम से जीवन को परिचय करवाता है. समस्त राजस्थानियों का यह कर्तव्य है की अपने साहित्य की रक्षा करें और उस पर गर्व करें |      

Rajasthani Language Literature: Short history
In previous posts, we knew about various aspects of language, and we also knew about Rajasthani language history, distribution, all the dialects of Rajasthan and we also discussed the challenges Rajasthani language is facing. Today we will talk about the rich literature of Rajasthan.
 Rajasthani Language Literature

Rajasthani language literature started from the 11th century when Maru-Gurjari language was developed. This Rajasthani literature can be divided into three eras on the basis of time.
  1. Early period (1100-1450)
  2. Medieval period (1450-1850)
  3. Modern period (1850-1950)
Another classification of the Rajasthani literature can be done on the basis of different forms. This difference is made on the style and the themes of the written literature.  It can be divided into following parts.
  • Rajasthani Jain Literature
  • Rajasthani Charan Literature
  • Rajasthani Saint Literature
  • Rajasthani Folk Literature
We will discuss first Rajasthani Literature history on the basis of time.

EARLY PERIOD (1100-1450)

Earlier before 1169, no written literature of Rajasthani is available because at that time it was primarily used as oral language only. So early period of Rajasthani literature starts from the 11th century and lasts till mid-14th century. Literature of Jain scholars dominated this era. Main work of Jain scholars of  early period is as follows
  • Vijresen Suri written Bharatvarsh war Bahubali Ghor
  • Bharteswar Bahubali Raas written by Shalibhadra Suri
  • Jiyadarya Raas by Asig
  • Padmawati Chaupai by Jinprabha Suri
  • Stulibhadra Phag authored by Hemraj
  • Gyan Manjari by Vijhana
Some non-Jain literature was also drafted in this early period which is as follows
  • Prithviraj Raso by Chandbardai in 12th century
  • Achaldas Khichi ri Vachnika by Gadan Shivdas
  • Visaldeo Raas by Narpati Nath
  • Ranmall Chanda by Shridhan

Medieval period (1450-1850)

Medieval era of Rajasthani Literature starts from 1450. It is considered as a golden period for Rajasthani Literature. A lot of text was written at this time.  Some of the famous work of that period is as follows.
  • In the year 1455  Padmanabh wrote Kanhadade Prabandh. It was considered as an encyclopaedia of that time.
  • Famous literature work Dhola Maru was written in this period in the year 1473 by Kallol.
  • Hammirayan was written by Bhandari Vyas in the year 1481
  • Buddhi Raso was written by Jallah in the year 1568
  • In the 17th century, Khumman Raso was written by Dalpat
  • Halan Jhalan ra Kundaliya was written by Bairath Isardas

Modern period of rajasthani literature (1850 to 1950)

The modern period of Rajasthani literature started from the year 1850. Many of the literature published in this modern era. But still, there were a lot of unpublished literature which made surveying of Rajasthani literature difficult.
  • Suryamal Mishra of Bundi wrote Vansh Bhaskar and Veer Satsai, in middle of 19th century. Suryamal Mishra was also called Bhusan of Rajasthan.
  • In similar period Alwar’s Ramnath Kavya wrote Draupadi Vinaya and Pabuji ra Soratha.
  • Swarup Das, a Dadupanthi scholar, wrote Pandava Yashendu Chandrika.
  • In 19th century Maharaja Chatur singh ji translated Patanjali’s Yogsutra and Geeta into Mewari.
  • Meghraj Mukul composed poem Sainani.


Classification on basis of different forms of literature of Rajasthan

The above classification of Rajasthani literature is based on the time. We knew about the famous writings of the various eras. A lot of development happened in Rajasthani literature from initial earlier period to modern period. Now we will look into the classification based on the form of literature art.  


Rajasthani jain literature

Literature written by various Jain scholars is called Jain literature. In an earlier era of Rajasthani literature role of Jain literature is immense. This literature is stored in ancient Jain temples. The famous authors of that time were Hemchandra Suri, Hrishivardhan Suri and Hemratna Suri.


Rajasthani Charan Literature

The Role of Charan community in Rajasthani literature is great. They have expounded the bravery stories of Rajput Kings. Followings are few authors of Charan community and their work.
  • Veer Bhayan was written by Baadar Dhaadi.
  • Prithviraj Raso was written by Chandbardai
  • Nainsiri Khyat wrote Nainsi
  • Bankidas wrote Bankidas ri Khyat
  • In poetry Dhola Maru ra Doha

Rajasthani Saint Literature

Rajasthan has produced many saints, like Meerabai, Saint Dadu, Pabuji, etc. Rajasthani Saints also produced some historical literature some of them are as follows
  • Meera ki Padavali
  • Daddu ki Vaani
  • Narsingh ji ki Vaani
  • Ram Charan ji ki Vaani

Rajasthani folk literature


Rajasthan is full of its folk culture. A lot of folk idioms, poems are famous in Rajasthan. This folk literature is available in folk songs, folk stories, etc.

Hence we see Rajasthan’s Literature is a vibrant and rich and it touches all aspects of life. Whether it is an occasion of happiness or sad moments, Rajasthan’s literature in the form of poems, songs, text or drama touches every thing. We all Rajasthani should be proud of our literature.